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एक अजन्मे को पत्र
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क्यूँ नहीं मुझको छुड़ाते! - अनहद की कलम से

क्यूँ नहीं मुझको छुड़ाते!

क्या हुआ?
कोशिशें तो कर रहा,
किन्तु कुछ नाकाम-सा ही लग रहा!
क्या तरीका है गलत?
या कि जल्दी मैं परीक्षण कर रहा?!

भीतरी आँखों से अपनी देखना-
-संदेह है,
करने, ना-करने का मुझे।
-संदेह रहता-
कुछ कमी मुझसे ही रहती
या कि मुझको
और धीरज धारना है?
-संदेह रहता-
कोशिशें मेरी ही तो बाधा नहीं है
या कि
जकड़ा हूँ जो तुझपे छोड़ना है?

हे प्रभु! निरीह मैं तो,
और अज्ञानी घना हूँ!
किन्तु तुम तो देख पाते हो वृहद को,
और मेरी बेबसी को भी समझते!
क्यूँ भला फिर भेद कर सारी दीवारें,
तुम नहीं मुझको छुड़ाने आन पाते?!

१५०९१८