उस एक क्षण को कैद कर लूँ
कि जब तुम्हें पाता हूँ, अपनी आँखो के सामने,
कभी चंचल, उच्छृंखल, कूदती-उछलतीं तुम,
स्वयं में लीन अंत तक…
अहा! क्या खुशी।
कभी गंभीर, व्यस्त सोचों में,
परिपक्व, सौम्य, आकर्षक…
अहा! क्या धीरता।
किन्तु उस क्षण का मिलना भी
कितना कठिन,
दिनों दिन करता प्रतीक्षा,
कि अब तुम आओगी, मेरे सामने,
या चंचल, या गंभीर,
मुझे तो हर रूप पसंद है तुम्हारा!
झाँकता में वृक्ष के पीछे से,
खिड़कियों की सलाखों के बीच से,
अब निकलोगी तुम अपने घर से,
हाँ, मैं तुम्हारी बाट जोहता हूँ,
अब निकलोगी तुम मुझे भरपूर
आँखों से देखते हुए,
या नहीं देखते हुए,
पर मैं तो देख लूँगा तुम्हें,
और फिर सोचूँगा,
कि काश
इस एक क्षण को कैद कर पाता मैं,
सदा के लिये, अपनी स्मृति में।