दिखे जो आँख बंद होने पर,
शरीर के सोने,
मन के लेट जाने पर,
वही स्वप्न है, एक मृदु असत्य।
व्यक्तियों की असमय जमावट,
परिवर्तित मूल की बनावट,
वही स्वप्न है, एक अकथित कथ्य।
उसी स्वप्न को देखने के लिये,
सत्य से मुख मोड़ने के लिये;
सोता हूँ सारी रात को,
छलने को हर इक बात को।
वश नहीं हो जिस पर,
बाँध जिस पर हो निष्फल,
वही स्वप्न है, एक मुक्त पद्य।
दिखे जो आँख बंद होने पर,
शरीर के सोने,
मन के लेट जाने पर,
वहीं स्वप्न है, एक मृदु असत्य।