उफ्फ़, लेकिन यह तो सपना था!


मैं छत पर बैठा ऊँघा-सा,
उसकी छत कुछ पास हो आई,
सखियों संग बतियाता देखा,
उफ्फ़, लेकिन यह तो सपना था!

नज़र मिलाई जानबूझकर,
देख रही मुझको मुस्काकर,
मैं ज़िद्दी मुंह फेर रहा था,
उफ्फ़, लेकिन यह तो सपना था!

अब आई  मेरी छत पर वो,
बोली “कहाँ मिले बतलाओ?”
मैं चौंका सा देख रहा था,
उफ्फ़, लेकिन यह तो सपना था!

व्यग्र बड़ी आँखे थी उसकी,
मिलने की थी चाह मेरी सी,
कल के किसी समय मिलना था,
उफ्फ़, लेकिन यह तो सपना था!

क्यूँ सपने ये टूटे जाते,
क्यूँ ना सदा साथ रह जाते,
अश्रु गाल पर बहता सा था,
उफ्फ़, लेकिन क्यूँ वो सपना था!