… तुमको ये क्या हुआ!

मन की खुशी को मैं बाँध नहीं पाता हूँ,
और किसी और से मैं बाँट नहीं पाता हूँ;
दौड़ूँ  मैं, भागूँ मैं, मिलने की जल्दी में,
बिछड़े, बरस बीते, जोड़ नहीं पाता हूँ।

बातें मैं याद करूँ, बचपन के मीता की,
छोटे से, नन्हे से, बालक हठीता की;
बापू की डाँट मेरे आँसू जो आ गए,
आँखो को पोंछता वो जीवन चहेता की।

पानी पिलाता था उसको हर रोज मैं,
नहलाता, नहलाकर करवाता भोज मैं;
सूरज से डरता वो, मस्ती बहार में,
संग मिल उसके ही करता था मौज मैं।

खेलू मैं कूदूँ मैं, लड़ जाऊँ उससे ही,
सहला जो मुझको दे, मन जाऊँ उससे ही,
छेड़े जो मुझको कभी भी कहीं कोई,
करता शिकायत था सबकी मैं उससे ही।

बातें बताता था वो भी सब मुझको,
करके इशारे वो समझाता, मुझको,
जब भी शरारत करे कोई उससे,
हिलता वो, जैसे बुलाता था मुझको।

‘आयाSS!’ चिल्लाया ,फिर चौंका मैं खुद से,
छोड़ा विचारों को यादों के पल से;
राही जो मेरे रस्ते के साथी थे,
पागल वो समझे, सकुचाया शरम से।

खोया मैं कल्पना में अब वर्तमान की,
उभरा इक चित्र, इक छाया गर्ववान सी;
ये ही तो मीत मेरा होगा उसी जगह,
देखेंगी आँखे वो मुझको हैरान सी।

सोच सोच बाते मैं आगे के होने की,
व्याकुल हूँ जैसे बाल-चाहत खिलौने की;
थोड़ी सी दूरी अब भरता डग लम्बे,
होगी अब सामने सूरत सलोने की।

पहुँचा स्थान और खोजूँ मैदान में,
“कहाँ हो मीता” पुकारूँ वीरान में;
दिखता नहीं कोई मीता की देह का,
झाँके आशंका उस लंबे सुनसान में।

पड़ती है आँखें मेरी ज़मीन पर,
कटा हुआ तरुवर! मैं बढ़ता हूँ डरकर,
सच्ची आशंका निकली ये जान कर,
पैर लड़खड़ाये, मैं गिरता हूँ मीत पर।

‘नहींSS मेरे मीता, तुमको ये क्या हुआ,
कहाँ गयीं पत्ती, उन फूलों का क्या हुआ;
हालत तुम्हारी बनायी, वो कौन है!
नहीं मेंरे मीता उस दृढ़‌ता का क्या हुआ!

टपकाता आँसू मैं मीत के अवशेष पर,
अचरज करूँ मैं उस आदम के शीष पर;
प्राण लिये इसके, इस मासूम वृक्ष के,
दिल में है ज्वाला, क्रोध दानव के भेष पर। 

‘नहीं’ मेरे मीता तुमको ये क्या हुआ,
नहीं मेरे मीता तुमको ये क्या हुआ?”