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तुम दे जाते हो
रात के गहन अंधकार में उजियारे की रोशनी …!
मौन… निस्वार्थ…!
दीपक तुम कितने प्रभावशाली हो,
हो नन्हे पर कितने बलशाली हो;
मैं अचरज करता तुमको जब देखूँ,
कैसे तुम इतने आशावादी हो!
अन्धकार से हम मानव डर जाते,
लौ बनकर तुम उसको हर ले जाते;
सूरज के विश्राम समय में आकर,
दीपक तुम हम सबकी ज्योति बन जाते।
तुम जगते जब हम बेसुध हो सोते,
निशि से करते बात प्रहरी तुम होते;
अंधकार को चीर, खोद कर नभ को,
नई भोर के बीज तुम्ही हो बोते।
संघर्षो की सीख हमें तुम देते,
हार-जीत से परे, शान से जीते;
निकट मृत्यु आ जाये तुम्हारे फिर भी,
प्रहारान्त कर उसे शान्ति से वरते।
देख तुम्हें मेरा ये मन पुलकित है,
लिखता हूँ जो भी मन में संचित है;
नमन दीप करता मैं तुमको झुककर,
शब्दकोष में शब्द बड़े सीमित हैं।