मुझे जीने की ज़िद चाहिये।
मैं अस्वीकार करता हूँ
मृत्यु के हर पहर को,
वरण कर उसके ही जीव-स्वरूप को!
मैं असाधारण नहीं,
अति-साधारण होना चाहता हूँ,
कि समा सकूँ गौरेया के
नन्हे-से घोसले में!
पाना चाहता हूँ
नव-जीवन की चहचहाहट में-
जीने की उसी ज़िद को!!
मुझे जीने की ज़िद चाहिये।
मैं अस्वीकार करता हूँ
मृत्यु के हर पहर को,
वरण कर उसके ही जीव-स्वरूप को!
मैं असाधारण नहीं,
अति-साधारण होना चाहता हूँ,
कि समा सकूँ गौरेया के
नन्हे-से घोसले में!
पाना चाहता हूँ
नव-जीवन की चहचहाहट में-
जीने की उसी ज़िद को!!