एक असीम करुणा का नाम है गुरु…!
जो स्वयं को मिला वो पूर्ण है, तत्क्षण मोक्षकारक…!
किंतु मोक्षपूर्व ज्ञान प्रदत्त करने की
एकमेव चाह…!
असीम नमन और वंदन…!
मैं भागता हूँ बार-बार
और तुम मुझे खींच लाते हो
उसी खेल में हर बार!
मैं रोता हूँ और तुम पोंछते हो मेरे आँसू,
अपनी स्नेहिल अँगुलियों से!
पुचकार कर तुम मुझे समझाते हो
इस क्रीड़ा में रहने का अर्थ
और इस से भागने की निरर्थकता को।
तुम मेरे सिर को सहलाते हो
और कितने जतन से संवारते हो
मेरे अंतर को।
तुम डपटते हो,
मुझे अपनी महीन करुणा से
और फिर बिठा लेते हो अपनी गोद में!
तुम बहुत प्यारे हो प्रभु,
बहुत प्यारे….!!
अहा