ज़िंदगी के तमाम थपेड़ों से जूझते
कब विदा हो जाता है प्रेम इस जीवन से,
ख्याल ही नहीं रहता…।
जब तलक समझ आता है, शून्यता गहन हो जाती है।
फिर कोई गीत, कोई नृत्य उत्सव नहीं लगता…!
फिर तो कोई प्रिय भी पास से गुज़र जाता है
बिना दिल की तरंगों को छुए…!
एक गहरी तटस्थता घेर लेती है समूचे अस्तित्व को…
पूरे गाम्भीर्य के साथ…!
‘वो, तट क्या सोचता!’
कभी ये सोचा,
नहीं ये सोचा कभी किसी ने,
सालों से, सदियों से स्थिर,
क्या तट को कोई दुःख लागे?!
बड़ा वेग, लहरें आती हैं,
छूकर धीमें, तट को पारकर,
थम जाती हैं।
क्या तट इतना ही कठोर है,
नहीं सोचता होगा क्या वो,
एक लहर से बात करे वो,
पूछे उसका नाम पता वो!
कभी नहीं क्या किसी लहर से
प्रेम तनिक हो पाया उसका,
कभी नहीं क्या किसी लहर से
उसने प्रेम जताया होगा!
बोला होगा, “मुझे प्रेम तुमसे, बतलाओ
तुम्हे प्रेम स्वीकार ये होगा?”
हो सकता है कभी ये तट भी,
चंचल, चपल, चलाया होगा!
कभी किसी सुंदर-सी लहर से
शायद प्रेम जताया होगा।
प्रत्युत्तर में शर्म हया से
लहर शीश झुक जाता होगा
-मुखड़ा भी मुसकाता होगा।
पर फिर शायद
साथ न रह पाई होगी वो लहर प्रेयसी,
छोड़ गई होगी वो तट को,
… अकेला;
छोड़ गई होगी वो तट को।
बिलखा होगा तट शायद तब,
रोया होगा याद लहर में,
-पाया होगा अश्रु-भँवर में।
रो-रोकर जब अश्रु खो दिए होगें सब
सारे आँखों के,
शांत-शांत, बस विरह वेदना हिय में
दीठ बस एक राह में।
एक राह में, धीरे-धीरे,
वो भी शांत पड़ गई होंगी
-थककर बंद हो गई होंगी।
और हृदय भी द्वार बंद कर
बस चुपचाप देखता होगा,
-कुछ भी नहीं सोचता होगा;
और तभी से ये तट शायद,
इतना शान्त, कठोर भी होगा।
इतना निश्चल, इतना स्थिर,
इतनी लहरों से विरक्त
-ना किसी लहर से प्रेम व्यक्त।
हाँ तभी से शायद, ये तट इतना
शान्त, कठोर और स्थिर होगा।
और तभी से ये ‘तट’ होगा।
Nice poetry touching our hearts
Shailendra Tiwari
9425009577