जीने की ज़िद

मुझे जीने की ज़िद चाहिये।मैं अस्वीकार करता हूँ मृत्यु के हर पहर को,वरण कर उसके ही जीव-स्वरूप को!मैं असाधारण नहीं, अति-साधारण होना चाहता हूँ,कि समा सकूँ गौरेया के नन्हे-से घोसले …

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बेबस, मौन विछोह

कितना मुश्किल साथ में चलना,साथ छोड़ फिर चलना,कितना मुश्किल रुक जाना है, मोड़ साथ में मुड़ना…!उम्र साथ ना साथ हौसला,ना विश्वास किसी का,कितना मुश्किल मुड़के देखना,मोड़ अजाने मुड़ना…! बहुत आहिस्ता …

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अनुत्तरित राहें

गंतव्य जब कहीं दूर-दूर भी नज़र नहीं आता, तब भटका सा अनुभव करता है जीवन की राह पर चलता राही…! और फिर उसी राह से प्रश्न करता है जिस पर …

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क्यों ना तुम फिर से लिख डालो!

कभी-कभी जिंदगी में हम अपने दुख में इतने डूब जाते हैं कि उसके सिवा और कुछ नज़र ही नहीं आता…! ना कोई दोस्त, ना हमदर्द… ! कोई मित्र जब अपने …

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