SUHAS MISHRA
तभी ये अपना व्योम रचेगा
उस पोखर पर गिरते कंकड़ से उसके अस्तित्व का एक अंश भर उठता है तमाम तरंगों की हुलक से…। पर मैं तो उस हुलक से बस कुछ देर तरंगित होता …
“माँ”- मेरी प्रथम गुरु
तिनका–तिनका जोड़ कर अपनी जिंदगी के हर लम्हे से, वो हमारे हिस्से का वक़्त बुनती है! कभी खामोशी से और कभी तेज़ आवाज़ से; कभी अपनी आंखों के महीन इशारे से …