तभी ये अपना व्योम रचेगा

उस पोखर पर गिरते कंकड़ से उसके अस्तित्व का एक अंश भर उठता है तमाम तरंगों की हुलक से…। पर मैं तो उस हुलक से बस कुछ देर तरंगित होता …

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माँ

माँ सिर्फ एक लफ्ज़, एक संबंध नहीं, बल्कि है एक समूचा अस्तित्व जिसकी गोद में बैठते या जिसके आकाश में विचरते हम अनुभव करते हैं जीवन का अद्भुत सत्य, सौंदर्य …

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“माँ”- मेरी प्रथम गुरु

तिनका–तिनका जोड़ कर अपनी जिंदगी के हर लम्हे से, वो हमारे हिस्से का वक़्त बुनती है! कभी खामोशी से और कभी तेज़ आवाज़ से; कभी अपनी आंखों के महीन इशारे से …

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