SUHAS MISHRA
एक व्यक्ति है और उसकी एक यात्रा है।
उसके साथ-साथ एक और यात्रा है- उसके एक्सप्रेशन की। उस व्यक्ति के साथ-साथ उसके एक्सप्रेशन की भी यात्रा चलती है। इस एक्सप्रेशन के कई माध्यम हो सकते हैं। कोई चित्र, कोई गीत या कि कोई नृत्य।
मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम मेरी कविता है। ये कविताएं कभी भीतर बह रहे शब्दों के लय–ताल से सीधे प्रस्फुटित हुईं और कभी अपने आप को अपनी डायरी के साथ साझा करते हुए वो कविता रूप में बह निकलीं। मेरी और मेरी कविता की यात्रा साथ ही चली है। ज़रूर यात्रा के कुछ पड़ावों पर वह कहीं अव्यक्त सी ही रही, पर फिर कहीं अपनी चुप को तोड़ मेरी आवाज़ बन मेरे साथ चल पड़ी।
अपनी कविता की यात्रा के ज़रिए में खुद का सफ़रनामा बुनता हूं और पिरोता हूं जिंदगी की एक माला।
मेरी इन कविताओं में जीवन के सत्य को जानने की चेष्टा से उपजे संघर्ष की अभिव्यक्ति है। खोज की इस यात्रा में अनुभव किये आनन्द की मिठास है। संदेह, विश्वास, तड़प और धैर्य के भावों को अभिव्यक्त करते गीत हैं।
एक इंजीनियर और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन शिक्षित व्यक्ति का 34 वर्ष कॉरपोरेट की दुनिया में काम करते हुए अपने शब्दों और उनकी रिदिम को संभाले रखना और उन्हें कागज़ पर उकेर पाना कई बार बहुत मुश्किल-सा हो जाता है। किंतु हर आत्मा की अपनी यात्रा है और वो अपने आप अपने स्वरूप को प्रकट करने की सतत चेष्टा करती ही रहती है। इस भीतरी भाव ने शायद मेरे कवि को जीवित रखा और मैं अपनी कलम से कुछ छंद, कुछ गीत रच पाया!
आत्मा की यात्रा के अतिरिक्त कुछ और भी है जो इस यात्रा को ऊर्जा देता है– वो हमारे पूर्वजों से चली आ रही आनुवांशिकता और परंपरा की यात्रा है। और मेरा सौभाग्य है कि मैं साहित्य की एक अनुपम और सुंदर धारा से संबद्ध हूँ।