कविता

कविता…मात्र एक कवि की स्व–अभिव्यक्ति या उसके पार भी कुछ और? यूँ अनुभव होता है कि एक कवि की अंगुलियों और कंठ से अभिव्यक्त होने के बहुत पहले ही एक …

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कूद पड़ो

भीतर कुछ है जो तुमसे कुछ कहना चाहता है… दिखाना चाहता है तुम्हे तुम्हारा रास्ता…! उसे सुनो, वो तुम्हें जानता है… तुम्हारे अंतरतम को भी वो खूब पहचानता है। उठो, …

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बस तुमको मालूम नहीं था

“कुछ झाँकता है उस धुंधलके से…! ओह! वो तो दिखता है आने वाला मेरा ही कल…!” “क्या वो जो तुमने ही लिखा था उस बीते हुए कल के हर बीतते …

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रोम रोम में

जीवन के बड़े गूढ़ फ़लसफ़े हैं। कुछ बस लफ़्ज़ों में जिंदा रहते हैं, पर हमे महसूस होता है कि हम उन जीवित-से लफ़्ज़ों को बहुत करीब से जी रहे हैं…। …

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