मैत्री और प्रेम
मुस्काता हँस जाता था…
मिलन की आस ही कुछ ऐसी है कि मन सब भूल बस अपने प्रिय की ही याद और उसका ही इंतज़ार करता रहता है! और जो ना मिल पाए… तो …
विवाह- मिलन दो आत्माओं का
है मिलन नहीं दूजा ऐसा, दो स्वयं मिले स्व मिला लिए;बन्धन आत्माओं का स्वतन्त्र, अनजान अभी, अब जान लिए। जो परम आत्म को तुम चाहो, बन्धन ये तुम्हें दिखा भी …
उफ्फ़, लेकिन यह तो सपना था!
मैं छत पर बैठा ऊँघा-सा,उसकी छत कुछ पास हो आई,सखियों संग बतियाता देखा,उफ्फ़, लेकिन यह तो सपना था! नज़र मिलाई जानबूझकर,देख रही मुझको मुस्काकर,मैं ज़िद्दी मुंह फेर रहा था,उफ्फ़, लेकिन …