ज्ञात नहीं कब कौन घड़ी

नहीं द्वार पर थाप पड़ी, आई नहीं पदचाप कहीं;हौले से दिल में आ बैठा, ज्ञात नहीं कब कौन घड़ी। मित्रवृत्त से तुष्ट हुआ,नहीं कोई था कष्ट हुआ;नहीं अधिक मित्रों की …

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मित्र-वियोग

अमवा के वृक्ष पर अमिया जब आ गईं,रमवा के बाग में हरियाली छा गई;देख-देख अमिया प्रसन्न होए जाता था,रमवा खुशी से घर, सर पर उठाता था।दिन-दिन तो घंटा में बीते …

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मैत्री

कल तक की मैं बात बताऊँ, मीत एक संग रहता था;वो कहता था मैं सुनता था, मैं कहता वो सुनता था। कई बरस तक साथ रहे, यादों में पीछे जाता …

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… और तभी से ये ‘तट’ होगा 

ज़िंदगी के तमाम थपेड़ों से जूझते कब विदा हो जाता है प्रेम इस जीवन से, ख्याल ही नहीं रहता…। जब तलक समझ आता है, शून्यता गहन हो जाती है। फिर …

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