तृष्णा तो शान्त हुई!

तृप्ति…!क्या छिपी है अकूट धन संपदा और उसके आडंबर में या मिल जाती है किसी कोमल हृदय के स्पर्श मात्र से…! था किवाड़ खुल रहा,खुल रहा चूँ-चूँ कर,हल्के से धक्के …

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क्यूँ सच को तू रहा उतारे!

कल जो नज़र आता था सच, बिलाशक; आज दिखता है झूठ का बेदर्द चेहरा…! और कल…? कल तो तय करेगा वक़्त का हर आता लम्हा…! वहम, भरम के परदे ढाँप …

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आज अम्बर नाचता है…

बादलों की गरजना की ढोल की-सी ताल पर,पवन संगत कर रही है तरुवरों से वाद्य पर;पाँव धरती पर पड़ें, उठते मधुर झंकार कर,आज अम्बर नाचता है, घुंघरुओं को बाँध कर। …

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