तभी ये अपना व्योम रचेगा
उस पोखर पर गिरते कंकड़ से उसके अस्तित्व का एक अंश भर उठता है तमाम तरंगों की हुलक से…। पर मैं तो उस हुलक से बस कुछ देर तरंगित होता …
उस पोखर पर गिरते कंकड़ से उसके अस्तित्व का एक अंश भर उठता है तमाम तरंगों की हुलक से…। पर मैं तो उस हुलक से बस कुछ देर तरंगित होता …
तिनका–तिनका जोड़ कर अपनी जिंदगी के हर लम्हे से, वो हमारे हिस्से का वक़्त बुनती है! कभी खामोशी से और कभी तेज़ आवाज़ से; कभी अपनी आंखों के महीन इशारे से …