श्री बद्रीनाथ गिरी
दिन बीता।बीता, दिन के साथ-साथ, जीवन बीता।भोर समय कोहरे ने गिरी का तन ढापा, सूरज के सम्मुख नतमस्तक-पिघला जाता।आदित्य और हिमपर्वत की उज्जवल आभा,मुख खिला देख दृश को, सुख की …
दिन बीता।बीता, दिन के साथ-साथ, जीवन बीता।भोर समय कोहरे ने गिरी का तन ढापा, सूरज के सम्मुख नतमस्तक-पिघला जाता।आदित्य और हिमपर्वत की उज्जवल आभा,मुख खिला देख दृश को, सुख की …
जीवन द्वीप नहीं होता है,वो होता है, अंतर्संबंध ना परावलंबन , ना स्वावलंबन, वो है, परस्पर-आलंबन!सब गुुँथा है, एक दूसरे के साथ-वृक्ष और मनुष्य, मनुष्य और पशु,पशु-पक्षी, सूरज, चाँद और …
ज़िंदगी की दौड़ में,मुकाबले औ’ होड़ में,दूसरे से जीतने को दौड़ता!किंतु चक्र में सभी,हैं दौड़ते अभी-अभी,है कौन आगे, किसको पीछे छोड़ता?!ज़िंदगी की दौड़ में,देखो जोड़-तोड़ में,दौड़ किससे जीतते या हारते?!इक …
संध्या के काले झुरमुट में, रात उतर जब आ जाती है,दिवस उदासा, बड़ा अभागा- आँख अश्रु से भर जाती है।ये अश्रु ही सब तारे हैं!बादल इन मासूम अश्रु के बहने …