रोशन, हो ही जाना है


कलम तो कागज़ों पर बस ज़रा 
रखी ही जाती है, 
उसका शब्द कागज़ पर उकरना, 
हो ही जाना है।

प्राण जो बह रहे भीतर, कहीं 
बाहर से आकर के, 
उनका बहते-बहते व्यक्त होना, 
हो ही जाना है।

उन्हे बहने दो, बहने दो, तरल 
चुपके सरकने दो, 
ज़मी के प्यार में तप कर, उन्हे 
आकाश होने दो।

उन्हे ना कैद कर भीतर, गर्भ का 
ख्याल भर रखना,
बीज माटी से खिल कर फूल, खुशबू 
हो ही जाना है।

नहीं ‘सुहास’ का कहना, कहीं 
बाहर की आहट है, 
खुली खिड़‌की कि हर कमरे को रोशन, 
हो ही जाना है।

कलम तो कागज़ों पर बस ज़रा 
रखी ही जाती है, 
उसका शब्द कागज़ पर उकरना, 
हो ही जाना है।

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