क्यूँ व्याकुल हूँ मैं!


प्रेम में तो व्यग्रता होती ही है,
जो प्रेम ना है तो भी क्यूँ व्याकुल हूँ मैं?!
ब्याहने की चाह तुमको है नहीं,
हो गईं ओझल तो क्यूँ आकुल हूँ मैं?!

आज भी मिलने को तुमसे आ गया,
आज भी वादा न कोई था किया;
कर रहा फिर भी प्रतीक्षा आज भी,
मिल नहीं पाईं, तो क्यूँ आतुर हूँ मैं?!

आ गईं जिस दिन भी तुम मिलने को यूँ,
एकटक, आँखों को तुम पर फेंक दूँ;
प्रेम जब ये है नहीं बतलाओ तुम,
क्यूँ खुशी इतनी औ’ क्यूँ पागल हूँ मैं?!