कल तक की मैं बात बताऊँ,
मीत एक संग रहता था;
वो कहता था मैं सुनता था,
मैं कहता वो सुनता था।
कई बरस तक साथ रहे,
यादों में पीछे जाता हूँ;
हर दिन के हर इक पलछिन में,
मैं उसको ही पाता हूँ।
याद करूँ पहला वो दिन जब,
वह मुझ पर झल्लाया था,
क्रुद्ध हुआ था मैं इतना,
चेहरा भी लाल हो आया था।
दिन बीते कुछ इसी तरह,
मुख देख भृकुटि तन जाती थी;
किसी बात पर दोनों की,
आपस में ही ठन जाती थी।
खिसके महिने हौले-हौले,
काल दूसरा आया था;
बद्किस्मत मैं कहता था कि,
साथ उसी का पाया था।
धीरे-धीरे समय बीतता
और बीतता चला गया;
समय बड़ा बलवान, साथ में,
द्वेष-क्लेश भी भगा गया।
अब वह दिन भी आना था,
जो गन्ध प्यार की लाया था;
हटा गया चुप्पी और दूरी,
जिसका हम पर साया था।
भूल न पाऊँ उस दिन को,
नहीं यार कोई, मैं अकेला था;
नहीं अकेले दोस्त,
हाथ मे हाथ लिये वो बोला था।
पाकर वह स्पर्श मित्रवत्
सम्मोहन-सा छाया था;
इस हालत में देख मुझे वो,
मन्द-मन्द मुसकाया था।
दिन बीते और महिने बीते
और वह बरस चला गया;
जाते-जाते वह मेरा इक
मीत सदा को बना गया।
गहरी होती गई मित्रता,
समय हमारे साथ था;
यारी के गुण गाने में,
जग करे हमारी बात था।
मुझको कोई कष्ट मिले और,
दर्द उसे हो जाता था;
उसका कोई दर्द मुझे,
तन से, मन से तड़पाता था।
समय असीमित, किस्मत सीमित,
वह दिन भी अब आना था;
मेरे मीता की मजबूरी,
छोड़ मुझे अब जाना था।
तन को लेकर बाहर जाए,
छोड़ दिया दिल मेंरे पास;
मेरा दिल लेकर के ही वो,
निकला बाहर करने वास।
किससे बात कहूँगा,
मैं ये सोच- सोच रो जाता हूँ;
बाते आती याद मीत की,
दिल अपना तड़पाता हूँ।
कितने वर्षों बाद मिलूँगा,
जानूूँ नहीं ये बात अभी,
डर के कारण दिन मेरा
संशय करता है कभी-कभी।
मेरे मीता सुन मेरी
विनती तू लौट के फिर आना,
आकर रहना पास मेरे,
फिर लौट कभी तू मत जाना,
फिर लौट कभी तू मत जाना…।