रमण पढ़ो, शंकर पढ़ो,
पढ़ो कोई परमहंस,
तुझमें ही डूबा दिखे,
योगी स्वनिरअंस।
प्रभु मेरे, इतनी शक्ति ना मुझमें।
प्रभु मेरे, इतनी भक्ति भर मुझमें।
पत्तों को नहराता जाऊँ,
और स्वयं को छलता जाऊँ,
राम-राम बस मुख ही उचारूँ,
नेत्र बंद माया ही बिचारूँ!
प्रभु मेरे, इतनी शक्ति ना मुझमें।
प्रभु मेरे, इतनी भक्ति भर मुझमें।
कौड़ी-कौड़ी उनने छोड़ी,
छोड़ा अन्न, लंगोटी छोड़ी,
छाया की चिंता भी तुझ पर,
देह, व्याधि सब किया समर्पण!
प्रभु मेरे, इतनी शक्ति ना मुझमें।
प्रभु मेरे, इतनी भक्ति भर मुझमें।
किन्तु प्रभु क्या मेरी शक्ति,
दे दे समर्पण दे दे भक्ति,
तेरे सिवा, सुध-बुध ना होवे,
तू ही करम, तू कर्ता होवे,
प्रभु मेरे, इतनी भक्ति भर मुझमें,
प्रभु मेरे, इतनी भक्ति भर मुझमें।
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