दिन बीता।
बीता, दिन के साथ-साथ,
जीवन बीता।
भोर समय कोहरे ने गिरी का
तन ढापा,
सूरज के सम्मुख नतमस्तक-
पिघला जाता।
आदित्य और हिमपर्वत की
उज्जवल आभा,
मुख खिला देख दृश को,
सुख की अविरल धारा!
२४०७१९
दिन बीता।
बीता, दिन के साथ-साथ,
जीवन बीता।
भोर समय कोहरे ने गिरी का
तन ढापा,
सूरज के सम्मुख नतमस्तक-
पिघला जाता।
आदित्य और हिमपर्वत की
उज्जवल आभा,
मुख खिला देख दृश को,
सुख की अविरल धारा!
२४०७१९