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एक अजन्मे को पत्र
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श्री बद्रीनाथ गिरी - अनहद की कलम से

श्री बद्रीनाथ गिरी

दिन बीता।
बीता, दिन के साथ-साथ,
जीवन बीता।

भोर समय कोहरे ने गिरी का
तन ढापा,
सूरज के सम्मुख नतमस्तक-
पिघला जाता।

आदित्य और हिमपर्वत की
उज्जवल आभा,
मुख खिला देख दृश को,
सुख की अविरल धारा!

२४०७१९