मैं डूबा हूँ कुंड में जिसमें
तेरी ऊर्जा भरी हुई,
बह जाता हूँ साथ कभी मैं,
शांत कभी मैं पड़ी हुई!
मैं खो जाता हूँ तुझमें,
जैसे मैं तुझसे अलग नहीं;
और कभी तड़पी-तड़पी
व्याकुल मैं तुझसे विलग पड़ी।
तेरे सूर्य, समीर, गगन में
सराबोर हो जाता हूँ,
माँग रही मिट्टी, जल तुझसे
मुझ याचक का दाता तू।
मेरे प्रभु! तू इसी कुंड में,
इसी पिंड को धुलवा दे,
पिघली-पिघली घूम रही
जल-भाप बना तू उड़वा दे।
उड़वा दे प्रभु तड़प बड़ी
विश्वास मैं कैसे दिलवाऊँ,
बूँद-बूँद गल रही देख,
पीड़ा ना अब ये सह पाऊँ।
देर ना कर प्रभु अब थोड़ी भी,
सच्ची-सच्ची कहता हूँ,
पल-पल प्राण छोड़ती, प्रभु
किस काल प्रतीक्षा करता तू।
विवश-विवश प्रभु, अब थककर,
लाचार पड़ा निर्जीव यहाँ,
हाथ तुम्हारी दिशा, साँस
अंतिम टूटे- ओ प्रभु कहाँ!
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